Sunday, July 18, 2010

लागते अनाम ओढ श्वासांना



लागते   अनाम  ओढ  श्वासांना
येतसे  उगाच  कंप  ओठांना
होई  का  असे  तुलाच  स्मरताना?

[संदीप] 
हसायचीस  तुझ्या  वस्त्रां सारखीच   फिकी  फिकी
माझा  रंग  होऊन  जायचा  उगाच  गहिरा!
शहाण्या साराखेच   चालले होते तुझे सारे
वेड्यासारखे  बोलू  जायचा  माझा  चेहरा!!

एकांती  वाजतात  पैंजणे
भासांची  हलतात  कंकणे
कासावीस  आसपास  बघताना......

[संदीप] 
संवादांचे  लावत  लावत  हजार  अर्थ
घातला  होता  माझ्यापाशी  मीच  वाद!
'नको' म्हणून  गेलीस  ती  हि  किती  अलगद
जशी  काही  कवितेला  जावी  दाद!...

मी  असा  जरी  नीजेस  पारखा
रात्रीला  टाळतोच  सारखा!
स्वप्नं  जागती  उगाच निजताना...

[संदीप]
सहजतेच्या  धुसर , तलम  पडद्यामागे
जपले  नाही  नाते  इतके  जपलेस  मौन!
शब्दच  नव्हे, मौनही  असते  हजार  अर्थी!
आयुष्याच्या  वेड्या  वेळी  कळणार  कुठून?

आजकाल  माझाही  नसतो  मी
सर्वांतून  एकटाच  असतो  मी!
एकटेच  दूर  दूर  फिरताना.... 

गीत : संदीप खरे 
संगीत : सलील कुलकर्णी 
स्वर : सलील कुलकर्णी 
अल्बम : सांग सख्या रे 

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